artigos recomendados
- Prestar homenagem a enfrentar …
- Como a RSE pode tornar as empr…
- Vendedor Carreira graxa trabal…
- A melhor solução para os seu…
- Como recuperar Vídeos excluí…
- Como planejar celebração de …
- Vantagens de seguir as atualiz…
- Primeiro Ano Comunicar-Card ch…
- Baidu DuBike Unveiled, recurso…
- Maternidade Direito da Famíli…
- Comemore o Dia da Amizade com …
- Soluções e Serviços de repa…
- Enchente causa estragos em Ass…
- Kanye West Air vendendo para $…
- O mercado imobiliário de recu…
Categoria
- o marketing afiliado
- Artes e Ofícios
- automotivo
- resenhas de livros
- o negócio
- carreira
- comunicações
- computadores
- educação
- diversão
- ambiente
- financiar
- comida bebida
- jogos
- médico saúde
- casa de família
- internet eBusiness
- crianças Adolescentes
- línguas
- legal
- marketing
- música
- animais de estimação Animais
- imobiliária
- relações
- auto-aperfeiçoamento
- comentários de compras
- notícia da sociedade
- Programas
- espiritualidade
- esportes recreação
- tecnologia
- viagem
- interesses das mulheres
- escrevendo falando
- outros
CONHEÇA O ISLÃO & CRISTIAN por Kalki Avatar
KNOW ISLAM & CRISTIAN वंश - ब. ऐतिहासिक वंश 3. चन्द्र वंशब्रह्मा के 10 मानस पुत्रों 1. मन से मरीचि, 2. नेत्रों से अत्रि, 3. मुख से अंगिरा, 4. कान से पुलस्त्य, 5. नाभि से पुलह, 6. हाथ से कृतु, 7. त्वचा से भृगु, 8. प्राण से वशिष्ठ, 9. अँगूठे से दक्ष तथा 10. गोद से नारद उत्पन्न हुये. मरीचि ऋषि, जिन्हें 'अरिष्टनेमि' के नाम से भी जाना जाता है, का विवाह देवी कला से हुआ. संसार के सर्वप्रथम मनु-स्वायंभुव मनु की पुत्री देवहूति से कर्दम ऋषि का विवाह हुआ था. देवी कला कर्दम ऋषि की पुत्री और विश्व का प्राचीन और प्रथम सांख्य दर्शन को देने वाले कपिल देव की बहन थी. मरीचि ऋशि द्वारा देवी कला की कोख से महातेजस्वी दो पुत्र 1. कश्यप और 2. अत्रि हुये. 1. कश्यप से सूर्य वंश और ब्रह्म वंश तथा 2. अत्रि से चन्द्र वंश का आगे चलकर विकास हुआ. अत्रि के पुत्र चन्द्र (ऐल) - त्रेता युग के प्रारम्भ में ब्रह्मा के मारीचि नामक पुत्र के द्वितीय पुत्र अत्रि (चित्रकूट के अनसूइया के पति अत्रि नहीं) हुए. अत्रि के पुत्र चन्द्र हुये, यह महाभारत से भी प्रमाणित है.अत्रे पुत्रो अभवत् सोमः सोमस्य तु बुद्धः स्मृत.बुद्धस्य तु महेन्द्राभः पुत्रो आसीत् पुरूखा. (महाभारत, अध्याय 44, श्लोक 4-18) मनुर्भरतवंश के 45 वीं पीढ़ी में उत्तानपाद शाखा के प्रजापति दक्ष की 60 कन्याओं में से 27 कन्याओं का विवाह चन्द्र से हुआ था. इन 27 कन्याओं के नाम से 27 नक्षत्रों 1. अश्विनी 2. भरणी 3. कृत्तिका 4. रोहिणी 5. मृगशिरा 6. आद्रा 7. पुनर्वसु 8. 9. पुष्य आश्लेषा 10. मघा 11. पूर्वा फाल्गुनी 12. उत्तरा फाल्गुनी 13. हस्ति 14 . चित्रा 15. स्वाति 16. विशाखा 17. अनुराधा 18. ज्येष्ठा 19. मूल 20. पूर्वाषाढ़ 21. उत्तराषाढ़ 22. श्रवण 23. घनिष्ठा 24. शतभिषा 25. पूर्वभाद्रपद 26. उत्तर भाद्रपद 27. रेवती) का नाम पड़ा जो आज तक प्रचलित है. चन्द्र के नाम पर चन्द्रवंश चला. चन्द्र बहुत ही विद्वान, भूगोलवेत्ता, सुन्दरतम व्यक्तित्व वाला तथा महान पराक्रमी था. साहित्यिक अभिलेखों के अनुसार सुन्दर होने के कारण देवगुरू वृहस्पति की पत्नी तारा इस पर आसक्त हो गई, जिसे चन्द्र ने पत्नी बना लिया. इस कारण भयानक तारकायम संग्राम हुआ. प्राचीन ग्रन्थों के अनुसार चन्द्र ने चन्द्रग्रह का पता लगाकर अपने नाम चन्द्र, बुध ग्रह का पता लगाकर अपने पुत्र बुध के नाम एवं तारागणों का पता लगाकर अपनी पत्नी तारा के नाम पर तारा और 27 पत्नीयों के नाम पर नक्षत्रों के नाम रखे. वर्तमान समय में भी इन नक्षत्रों के नाम पर वशंधर व जातियाँ मिलती हैं जैसे अश्विनी (अरब की अश्व व वाजस्व जाति), आश्लेषा (एरी व आस्यवियन जाति), मघा (जुल्डस जाति), अनुराधा (अरक्सीज जाति असीरियन), रेवती (रेविन्डस जाति ) इत्यादि. चन्द्र वंशीयों का अधिकतर क्षेत्र ईरान एवं उसके आस-पास में था इसलिए अधिकांश चन्द्रवंशीयों के वंशधर कालान्तर में यहूदी, इसाई और इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिए. आज भी चन्द्रवंशीयों के वंशधर अपने पूर्वज चन्द्र व उनकी पत्नी तारा की स्मृति में अपने झण्डे का प्रतीक चन्द्र व तारा रखे हैं.चन्द्रवंश के प्रमुख राजवंश के अतिरिक्त इन कन्याओं से कई कुल उत्पन्न हुए. चन्द्र के पुत्र बुध हुये इनका विवाह सूर्य के पुत्र अर्यमा के पुत्र 7 वंे मनु-वैवस्वत मनु की पुत्री इला से हुआ. चन्द्रवंश यहीं से चला. इला के नाम पर इसे ऐल वंश भी कहा जाता है. सर्वप्रथम सूर्य की पत्नी 3. बड़वा के सबसे छोटे आदित्य 7 वें मनु - वैवस्वत मनु अपने दामाद चन्द्र के पुत्र बुध के साथ ईरान के रास्ते हिन्दूकुश पर्वत पार करके भारत भूमि पर आये. वैवस्वत मनु ने अपने पूर्वज सूर्य के नाम पर सरयू नदी के किनारे सूर्य मण्डल की स्थापना किये और अपनी राजधानी अवध अर्थात वर्तमान भारत के अयोध्या में बनायी जिसे सूर्य मण्डल कहा जाता है. इसी प्रकार बुध ने अपने पूर्वज के नाम से गंगा-यमुना के संगम के पास प्रतिष्ठानपुरी में चन्द्र मण्डल की स्थापना कर अपनी राजधानी बनायी जो वर्तमान में झूंसी-प्रयाग भारत के इलाहाबाद जनपद में है. सूर्य मण्डल और चन्द्र मण्डल का संयुक्त नाम "आर्यावर्त" विख्यात हुआ. आर्यो का आगमन काल ई.पूर्व 4584 से 4500 ई.पूर्व के बीच माना जाता है. इसी समय के बीच विश्व में नदी घाटी सभ्यता का अभ्युदय हुआ था. बुध के दो पुत्र सुद्युम्न और पुरूरवा हुये. बुध के पुत्र सुद्युम्न के तीन पुत्र उत्कल, गयाश्व और शविनिताश्व हुए. उत्कल, उड़ीसा राज्य के स्थापक, गयाश्व गया राज्य के स्थापक हुये. शविनिताश्व, पश्चिम चले गये.बुध के पुत्र पुरूरवा का विवाह इन्द्र द्वारा दी गई उर्वसी अप्सरा से हुआ. पुरूरवा महान प्रतापी हुए. उन्हें माता का इलावृत वर्ष भी मिला. इसी वंश में आयु, नहुष, क्षत्रवृद्धि, रजि, यति, ययाति, कैकेय इत्यादि हुये. ययाति की प्रथम पत्नी दैत्य गुरू शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी थी तथा दूसरी पत्नी दैत्यराज वृषपर्वा की पुत्री शर्मिष्ठा थी.चन्द्र वंश के राजा ययाति की प्रथम पत्नी देवयानी (दैत्य गुरू शुक्राचार्य की पुत्री) से दो पुत्र यदु (यदुवंश) और तुर्वसु (तुर्वसु) तथा दूसरी पत्नी शर्मिष्ठा (दानव वंश के वृषपर्वा की पुत्री) से तीन पुत्र पुरू (पुरू वंश), अनु (अनुवंश) और द्रह्यु (द्रह्यु वंश) हुये. इन पाँच पुत्रों से पाँच शाखाएँ चली. यदुवंश से ही कोष्टु वंश, आवन्त वंश, अन्धक वंश, तैतिर वंश, वृष्णि वंश, भाटी वंश, जाडेजा वंश व जादौन वंश का विस्तार हुआ. इसी यदुवंश में दुर्योधन के मामा शकुनि, चन्देरी राज्य के संस्थापक शिशुपाल, जरासन्ध, सत्यजित, देवक, उग्रसेन, देवकी, कृष्ण के मामा कंस, शूरसेन, वसुदेव, कुन्ती, सात्यकी, सुभद्रा, बलराम इत्यादि हुये. यदुवंश के सात्वत के पुत्रों में भजमान से भजमान वंश चला. भजमान के 4 पुत्र विदूरथ, महाराजन, राजन तथा पुरंज्जय थे. बड़ा पुत्र होने के कारण विदूरथ राज्याधिकारी बना. शेष को केवल श्रेष्ठतानुसार गायें तथा एक-एक क्षेत्र का अधिपति बनाया गया. विदूरथ आमीरपल्ली का राज्याधिकारी बना. महाराजन को महानन्द की उपाधि मिली और इन्हें नन्द गाँव, राजन को उपनन्द की उपाधि और बरसाना गाँव तथा पुरंज्जय को नन्द महर की उपाधि व गोकुल का क्षेत्र दिया गया. बाद में इस वंश में श्रीकृष्ण, बलराम के वंशजों का भी बहुत अधिक विस्तार हुआ जिनके वंशज आज भी हैं. श्रीकृष्ण (पत्नीयाँ 1. रूक्मिणी 2. कालिन्दी 3. मित्रवृन्दा 4. सत्या 5. भद्रा 6. जाम्बवती 7. सुशीला 8. लक्ष्मणा) के 10 पुत्र 1. प्रद्युम्न 2. चारूदेण 3. सुवेष्ण 4. सुषेण 5. चारूगुप्त 6. चारू 7 . चारूवाह 8. 9. चारूविन्द भद्रचारू 10. चारूक हुये. श्रीकृष्ण के बाद मथुरा के राजा ब्रजनाभ हुये.इस प्रकार चन्द्र के वंशजों से चन्द्रवंश का साम्राज्य बढ़ा जिनका सम्पूर्ण भारत में फैलाव होता गया. वर्तमान में इस चन्द्रवंश की अनेक शाखाएँ है- चन्द्र, सोम या इन्दु वंश, यदुवंश, भट्टी या भाटी वंश, सिरमौरिया वंश, जाडेजा वंश, यादो या जादौन वंश, तुर्वसु वंश, पुरू वंश, कुरू वंश, हरिद्वार वंश, अनुवंश, दुहयु वंश , क्षत्रवृद्धि वंश, तंवर या तोमर वंश, वेरूआर वंश, विलदारिया वंश, खाति वंश, तिलौता वंश, पलिवार वंश, इन्दौरिया वंश, जनवार वंश, भारद्वाज वंश, पांचाल वंश, कण्व वंश, ऋषिवंशी, कौशिक वंश, हैहय वंश, कल्चुरी वंश, चन्देल वंश, सेंगर वंश, गहरवार वंश, चन्द्रवंशी राठौर, बुन्देला वंश, काठी वंश, झाला वंश, मकवाना वंश, गंगा वंश, कान्हवंश या कानपुरिया वंश, भनवग वंश, नागवंश चन्द्रवंशी, सिलार वंश, मौखरी वंश, जैसवार वंश, चैपट खम्भ वंश , कर्मवार वंश, सरनिहा वंश, भृगु वंश, धनवस्त वंश, कटोच वंश, पाण्डव वंश (पौरव शाखा से, इसमें ही पाण्डव व कौरव थे. महाभारत युद्ध में कौरवों का नाश हो गया जिसमें धृतराष्ट्र के एक मात्र शेष बचे पुत्र युयुत्स के वंशज कौरव वंश की परम्परा बनाये रखे हैं. पाण्डव वंश की शाखा अर्जुन के पौत्र परीक्षित से चली.), विझवनिया चन्देल वंश (विशवन क्षेत्र में आबाद होने के कारण विशवनिया या विझवनिया नाम पड़ा. इनकी एक शाखा विजयगढ़ क्षेत्र सोनभद्र, दूसरी जौनपुर जिले के सुजानगंज क्षेत्र के आस-पास 15 कि.मी. क्षेत्र में आबाद हैं. इनकी दो मुख्य तालुका खपड़हा और बनसफा जौनपुर में है. इसी खपड़हा से श्री लव कुश सिंह "विश्वमानव" के पूर्वज नियामतपुर कलाँ व शेरपुर, चुनार क्षेत्र, मीरजापुर में गये थे. श्री लव कुश सिंह "विश्वमानव" उनके तेरहवें पीढ़ी के हैं.), रकसेल वंश, वेन वंश, जरौलिया वंश, क्रथ वंश, जसावट वंश, लंघिया वंश, खलोरिया वंश, अथरव वंश, वरहिया वंश, लोभपाद वंश, सेन वंश, चैहान वंश , परमार वंश, सोलंकी वंश, परिहार या प्रतिहार वंश, जाट वंश, गूजर वंश, लोध वंश, सैथवार, खत्री (हैहयवंशी की शाखा), पाल वंश. . ओसवाल (ओसिया मरवाड़) और माहेश्वरी (इष्टदेव महेश्वर) पूर्व में चन्द्रवंशी क्षत्रिय थे चन्द्रवंश वंशावली बहुत ही वृहद है. इनमें से अनेक शाखाएँ-प्रशाखाएँ होती गई. इनमें से क्षत्रिय से ब्राह्मण भी हुए तथा बहुत से ऋषि भी हुए. चन्द्रवंशी क्षत्रियों में यदु तथा पुरूवंश का बहुत बड़ा विस्तार हुआ और अनेक शाखाएँ-प्रशाखाएँ भारतवर्ष में फैलती गई www ponto
. Moralrenew dot com
Anterior:Cars2Charities cria mais valor a partir de doações de carro para Cruz Vermelha por Farooq Gill
notícia da sociedade
- Por que você deve enviar ajuda médica para a Síria pela Síria Relief
- POR QUE HÁ UMA NECESSIDADE DE MENINA DE EDUCAÇÃO? por Pumpkin Seeds
- Las Vegas Charity Tournament Golf para beneficiar US Veterans por RPC Agency
- Como você poderia resolver o problema da febre lâmpadas LED? (2) por Mengting …
- Obter uma melhor saída em Negócios Com Técnicas eficazes de Marketing na Inte…
- THE RISING INDIA - Inovador consultores financeiros PVT. LTD. por Anand Kumar
- Miss Mundo 2015 Filipinas ao vivo - 18 outubro de 2015 por Newsinfos M.
- Obtendo seu carro Accident Compensation Claims Colonizada por Steven Addison
- Saber sobre as formas de obter satisfação em sua vida privada por Angela Willk…
- ARA /Fraude e Serviços Forenses: Análise das Demonstrações Lingüística por…
- Seu guia essencial para melhorar a segurança no seu prédio de escritórios por…
- A partir de Maharashtra, os políticos Jovens começar a construir uma ligação…
- De Delhi Melhor Evento Sociedade Gestora por Kanu Priya
- Notícias objectivo e como evitar viés por Jm Bob
- Cor Fitas Ltd: fazer suas próprias fitas personalizados! por Groshan Fabiola